4 विचारक, विश्वास और इमारतें (सांस्कृतिक विकास-ई०पू० 600 से ईसा संवत 600 तक)
1. दियम्बर एवं श्वेताम्बर कौन थे?
Ans. श्वेताम्बर तथा दिगम्बर : मौर्य युग (चौथी शताब्दी ई० पू०) में जैन धर्म की दो
शाखाएँ हो गई- (1) श्वेताम्बर (2) दिगम्बर। कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के अन्तिम वर्षों में मगध में बड़ा भारी अकाल पड़ा। इस अकाल के कारण, भद्रबाहु अपने अनुयायियों सहित वापिस लौटकर आये, तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उत्तरी भारत के जैनियों ने अपनी पुरानी परम्पराओं को बिल्कुल छोड़ दिया है। अब वे नंगे नहीं रहते बल्कि सफेद कपड़े पहनते है। दक्षिण से लौटे हुए जैनियों का दावा था कि अकाल के दिनों में भी उन्होंने धार्मिक नियमों का विधिवत् पालन किया है। उनका कहना था कि मगध में रह रहे जैनियों ने नियमों का उल्लंघन किया है तथा वे लापरवाह हो गए हैं। इन मतभेदों को दूर करने के लिए तथा जैन धर्म के प्रमुख उपदेशों को संकलित करने के लिए पाटलिपुत्रमें एक परिषद् का आयोजन किया गया। दक्षिण से वापिस आये जैनियों ने इस परिषद् का बहिष्कार किया तथा इसके निर्णयों को मानने से इन्कार कर दिया। तब से ही दक्षिणसे वापिस आये जैन साधु दिगम्बर कहलाए तथा मगध में रहे जैन साधु श्वेताम्बर कहलाए
Q.2. बौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग के नाम बताइए।
Ans. अष्टांगिक मार्ग : गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित दुःख निरोध हेतु आठ मार्ग निम्न है-
1. सम्यक् दृष्टि: चार आर्य सत्यों की सही परख।
सम्यक् वाणी : धर्मसम्मत एवं मृदु वाणी का प्रयोग।
3. सम्यक् संकल्प :
भौतिक वस्तु एवं दुर्भावना का त्याग।
4. सम्यक् कर्म : सत् कर्म करना।
3 सम्यक् आजीव : सदाचारी जीवन जीते हुए ईमानदारी से आजीविका कमाना। सम्यक् व्यायाम
6: विवेकपूर्ण प्रयत्न एवं शुद्ध विचार ग्रहण करना।7. सम्यक् स्मृति : अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी को सदैव स्मरण रखना। अर्थात् मन, वचन, कर्म की प्रत्येक क्रिया के प्रति सचेत रहना।
8. सम्यक् समाधि :चित्त की समुचित एकाग्रता
Q.3. बौद्ध संघ पर एक टिप्पणी लिखें।
Ans. बौद्ध धर्म में संघ का महत्वपूर्ण स्थान था। बुद्ध ने अपने विचारों के प्रचार-प्रसार
के लिए बौद्ध संघ की स्थापना की थी। संघ की कार्य-प्रणाली गणतंत्रात्मक थी। सभा की वैध कार्यवाही के लिए 20 सदस्यों की संख्या (कोरम) निश्चित की गयी थी। बुद्ध ने 18 वर्ष की आयु से ऊपर के पुरुषों को संघ का सदस्य बनने की आज्ञा दे दी, परन्तु संघ का सदस्य बनने के लिए कोढ़, तपेदिक और अन्य छूत का रोग नहीं होना चाहिए था।
Q.4. बौद्ध संगीतियाँ क्यों बुलाई गयी ?
Ans. बौद्ध धर्म के प्रचार एवं इसमें सुधार करने के लिए समय-समय पर बौद्ध सभाओं का आयोजन किया जाता था जिन्हें बौद्ध संगीतियों के नाम से जाना जाता है। इसके लिए चार बौद्ध संगीतियों का महत्वपूर्ण योगदान है। बौद्ध धर्म में उठे मतभेदों को सुलझाने के लिए इन सभाओं का आयोजन महात्मा बुद्ध की मृत्यु के उपरान्त किया गया था।
चार बौद्ध संगीतियाँ:
| राजगृह की प्रथम बौद्ध संगीत इस संगीति का आयोजन 487 ई० १० में हुआ था। संगीति के विचार-विमर्श द्वारा तथागत की समस्त शिक्षाओं को दो भागों में विभाजित कर दिया गया- (a) धम्म पिटक तथा (b) विनय पिटक। इन दोनों पिटकों में शिशुओं के व्यावारिक तथा नैतिक आचार-विचार के नियमों की स्पष्ट व्याख्या की गई है।
2. वैशाली की द्वितीय संगीति महापरिनिर्वाण के ठीक सौ वर्ष बाद 387 ई० पू० में वैशाली में द्वितीय संगीति का आयोजन किया गया।
3. पाटलिपुत्र की तृतीय संगीति महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 236 वर्षों के पश्वात् तथा सम्राट अशोक के समय, 251 ई० पू० में आचार्य मोग्गिलिपुत्र तस्स की अध्यक्षता में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन पाटलिपुत्र में किया गया।
4. कश्मीर की चतुर्थ संगीति राजा कनिष्क के राज्यकाल में वसुमित्र तथा अश्वघोष की अध्यक्षता में बौद्ध धर्म की चतुर्थ तथा अन्तिम संगीति का आयोजन कश्मीर में किया गया।
Q.5. बौद्धधर्म की मुख्य शिक्षाओं पर प्रकाश डालिए।
(Imp.) Ans. बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षा निम्न है- बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन है। बौद्ध धर्म में पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, कर्म के समक्ष व्यर्थ है। बौद्ध धर्म में अहिसा सबसे बड़ा धर्म है। यन्न आदि में इनका विश्वास बल देता है। बौद्ध धर्म मोदक्ष प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म और पवित्र जीवन पर बल देता है। बौद्ध धर्म संघ को धर्म का प्रचार माध्यम बनाता है, मठों में अध्ययन-अध्यापन का कार्य होता है। बौद्ध धर्म का विस्तार देश-विदेश दोनों स्थानों पर हुआ। एशिया के कई देश इसकी छाया में आ गये थे।
Q.6. महायान सम्प्रदाय के विषय में आप क्या जानते हैं?
(Imp.) Ans. महायान सम्प्रदाय के अनुयायी बौद्ध धर्म को सरल बनाना चाहते थे। ये लोग भगवान बुद्ध की मूर्ति पूजा करते थे। इस सम्प्रदाय के लोगों ने धीरे-धीरे अहिसा के सिद्धान्तो. नैतिकता आदि पर जोर दिया। यह चीन और मध्य एशिया में अधिक प्रचलित हुआ।
Q.7. वज्रयान सम्पदाय के विषय में आप क्या जानते हैं?
(Imp.) Ans. वज्रयान सम्पद्राय का उदय 8वीं सदी में बगाल एवं बिहार में हुआ। इसके अनुयायी कई प्रकार की गोपनीय क्रियाएँ करते थे जिनमें स्त्रियाँ एवं मदिरा आवश्यक होती थी। इस सम्प्रदाय में देवियों का महत्व था जिन्हें बुद्ध की रानियों के रूप में प्रस्तुत किया गया। देवियों को तारा कहा गया। यह धर्म पंजाब, कश्मीर, सिध एवं अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। इसकी बुराइयाँ ही कालान्तर में बौद्ध धर्म के पतन का कारण बनीं।
Q.8. गौतम बुद्ध किस तरह एक ज्ञानी व्यक्ति बने ?
Ans. लगभग 30 वर्ष की अवस्था में गौतम ने अपने पिता के घर अथवा महल को त्याग दिया। वे जीवन के सत्य को जानने के लिए निकल पड़े।
सिद्धार्थ ने साधना के कई मार्गों का अन्वेषण किया। इनमें एक था शरीर को अधिक-से-अधिक कष्ट देना जिसके चलते वे मरते-मरते बचे। इन अतिवादी तरीकों को त्यागकर, उन्होंने कई दिन तक ध्यान करते हुए अंततः ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद ही उन्हें बुद्ध अथवा ज्ञानी व्यक्ति के नाम से जाना गया है। शेष जीवन उन्होंने धर्म या सम्बक जीवनयापन की शिक्षा दी
Q9. जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण उपदेशों / शिक्षाओं का वर्णन करें।
Ans. जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं- जैन धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा यह है कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। यहाँ तक कि पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है।
(2) जीवों के प्रति अहिंसा- खासकर इंसानों, जानवरों, पेड़-पौधों और कीड़े-मकोड़ों को न मारना जैन दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। वस्तुतः जैन अहिंसा के सिद्धान्त ने सम्पूर्ण आरतीय चिन्तन परम्परा को प्रभावित किया है।
(ब) जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है। कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की जरूरत होती है। यह संसार के त्याग से ही संभव हो पाता है। इसीलिए मुक्ति के लिए विहारों में निवास करना एक अनिवार्य नियम बन गया।
(iv) जैन साधु और साध्वी पाँच वत करते थे- हत्या न करना, चोरी नहीं करना, • झूठ न बोलना, ब्रह्मचर्य व्रत (अमृषा) और धन संग्रह न करना।
Q.9. मुगलकालीन सिंचाई व्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans. मुगल काल में सिचाई हेतु कुँए, नहर आदि का उपयोग किया जाता था। फिरोज साह तुगलक (1351-1388 ई०) ने उत्तर भारत में नहरों का जाल बिछवाया था। कुँए से सिचाई हेतु अर्घट (रेहट) का उपयोग होता था। 16वीं शदी के प्रारम्भ में पंजाब और सतलज के क्षेत्र में प्रयुक्त पूर्ण रूप से विकसित यंत्र का वर्णन मिलता है। बाबर की आत्मकथा बाबरनामा में रहट का वर्णन दिया गया है।
Q.10. बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
Ans. बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में निम्न अन्तर है-
• बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन है। जबकि जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व
को बिल्कुल नहीं मानता।
• बौद्ध धर्म में पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, कर्म के समक्ष व्यर्थ है जबकि जैन धर्म में
प्रार्थना कुछ भी नहीं है, तप और व्रत ही मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं। • बौद्ध धर्म में अहिसा सबसे बड़ा धर्म है। यज्ञ आदि में इनका विश्वास बल देता है
जबकि जैन धर्म अहिंसा पर अत्यधिक बल देता है, जड़ पदार्थों में जीवन का आभास। • बौद्ध धर्म मोक्ष प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म और पवित्र जीवन पर बल देता है। जबकि जैन धर्म मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिरत्न पर बल देता है-
• सम्यक ज्ञान, सम्यक कर्म तथा अहिंसा। का प्रचार माध्यम बनाता है, मठों में अध्ययन-अध्यापन का कार्य
बौद्ध धर्म संघ को धर्म होता है। जबकि जैन धर्म के संघ नहीं होते, परन्तु धर्म-प्रचार के लिए प्रचारक होते हैं। • बौद्ध धर्म का विस्तार देश-विदेश दोनों स्थानों पर हुआ। एशिया के कई देश इसकी छाया में आ गये थे। जबकि जैन धर्म केवल भारत में ही फूला-फला।
Q.11. साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया है? कारण दें। Or, साँची के स्तूप पर प्रकाश डालें।
Ans. अमरावती की खोज संभवतः कुछ पहले हो गई थी। उस समय तक विद्धान इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज स्थल पर ही संरक्षित करना आवश्यक होता है। 1818 में साँची की खोज हुई। इसका निर्माण अशोक के शासनकाल में हुआ। बौद्ध
काल के अर्द्धगोलाकार रूप में बने भवन स्तूप कहलाते थे। उस समय तक भी इसके तीन तोरणद्वार खड़े थे। चौथा द्वार वहीं पर गिरा हुआ था। टीला अभी भी अच्छी दशा में था। तब भी यह सुझाव दिया गया कि तोरणद्वारों को पेरिस या लंदन भेज दिया जाए। परन्तु कई कारणों से साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। इसके विपरीत अमरावती का महाचैत्य अब केवल एक छोटा-सा टीला मात्र है जिसका सारा गौरव नष्ट हो चुका है
Q.12. बौद्ध और जैन सम्प्रदायों को धार्मिक सुधार आन्दोलन क्यों कहा जाता है? \
Ans. जैन मत और बौद्ध मत के मुख्य सिद्धान्तों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है
कि महावीर स्वामी और महात्मा बुद्ध दोनों ही किसी नए धर्म के प्रवर्तक नहीं थे। वे तो सुधारक थे, जो हिन्दू समाज की त्रुटियों को दूर करना चाहते थे। जिन सिद्धान्तों को महावीर और महात्मा बुद्ध ने लोगों में प्रचारित किया वे सब हिन्दुओं के उपनिषदों में से ही लिए गए थे।
• कर्म और मोक्ष आदि सिद्धान्त हिन्दू धर्म से ही लिये गये हैं। संस्कृत भाषा को जैन धर्म ने छोड़ा ही नहीं। बौद्ध मत ने थोड़े समय के लिये संस्कृत भाषा का त्याग किया, परन्तु महायान शाखा ने फिर से संस्कृत भाषा को अपना लिया। इस प्रकार हम कह सकते है कि बौद्ध और जैन सम्प्रदाय सुधार आन्दोलन ही थे।
Q.13. चार बौद्ध स्थल कहाँ-कहाँ स्थित है?
Or, महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति तथा निर्वाण स्थल कौन से हैं? Ans. महात्मा बुद्ध को ज्ञान-प्राप्ति तथा निर्वाण-स्थल निम्नलिखित है-
• लुम्बिनी : यहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था। यह स्थान नेपाल में है। • बोधगया: जहाँ उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। यह स्थान बिहार में है।
• सारनाव : यह स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश में है। यहाँ बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था।
• कुशीनगर : यह स्थान देवरिया उत्तर प्रदेश में है। यहाँ बुद्ध ने परिनिर्वाण प्राप्त किया था।
Q.14. नियतिवाद तथा भौतिकवादियों में क्या अन्तर था?
Ans. नियतिवादी आजीविक परंपरा के थे। उनके अनुसार जीवन में सब कुछ पूर्व निर्धारित है। इसे बदला नहीं जा सकता। इसके विपरीत भौतिकवादी उपदेशक लोकायत परंपरा के थे। वे दान, दक्षिणा, चढ़ावा आदि देने को खोखला, झूठ और मूर्खे का सिद्धान्त मानते थे। वे जीवन का भरपूर आनंद लेने में विश्वास रखते थे।
Q.15. स्तूप, चैत्य, विहार से आप क्या समझते हैं?
(Imp.) Ans. स्तूप : महात्मा गौतम की अस्थियों पर अर्द्ध गोलाकार रूप में बने भवनों को स्तूप कहते है। साँची और अमरावती के स्तूप विश्व भर में प्रसिद्ध है।
चैत्य : प्राचीनकाल में विशेष वनस्पति, अनूठी चट्टानों या आश्चर्यजनक सौन्दर्य वाले स्थल पवित्र बन जाते थे। ऐसे स्थलों पर एक छोटी सी वेदी बनी रहती थी। इन्हीं स्थलों को चैत्य कहा जाता था। अथवा, शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष टीलो पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े ये टीले चैत्य के रूप में जाने जाते थे। बिहार : बौद्ध मठों को विहार कहा जाता था। विहार में बौद्ध भिक्षु वर्षा ऋतु में रहते थे। नासिक (महाराष्ट्र राज्य) में ऐसे तीन विहार मिले हैं।
.16 ‘गुणकाल के विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर प्रकाश डालें।
Ans. गुप्तकाल में विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई थी। गणित, रसायन निडान, पदार्थ विज्ञान, धातु विज्ञान और ज्योतिष आदि की इस काल में काफी प्रगति हुई थीं। दशमलव-भिन्न की खोज और रेखागणित का अभ्यास इसी काल की देन है। आर्यभट्ट इस युग के ख्याति प्राप्त गणितज्ज्ञ और ज्योतिषी थे। उनका ग्रहण के संबंध में विचार वास्तव में वैज्ञानिक है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। चरक और सुबुत इस युग के प्रसिद्ध वैद्य थे। बराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त इस काल के ज्योतिषज्ञ थे। वद्य सिद्धान्त ब्रह्मगुप्त की ही रचना थी।