यात्रियों के नजरिए : समाज के बारे में उनकी समझ (लगभग 10 वीं से 17वीं सदी तक
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Q.1. अल-बरूनी के विषय में आप क्या जानते हैं?
Ans. अलबरूनी को जन्म 973 ई० में आधुनिक उजबेकिस्तान के ख्वारिज्म नामक स्थान में हुआ था। वह अरबी, फारसी, संस्कृत, ज्योतिष आदि कई भाषाओं का जानकार
था। 1017 ई० में जब महमूद गजनी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तब लौटते समय यह आल-बेरुत्वी को भी भारत ले आया। जब पंजाब गजनी के साम्राज्य में मिला लिया गया तब अल बेरूची को भारत के संस्कृत के विद्वान बाह्मणों से सम्पर्क करने एवं संस्कृत के अन्धों को पढ़ने का मौका मिला। उसने तत्कालीन भारत के धर्म, प्रथाएँ, औषधियाँ, ज्योतिष, त्यौहार, दर्शन, विधि, प्रतिमा निर्माण आदि से सम्बन्धित एक किताब अरबी भाषा में लिखी जिसका नाम है-किताब-उल-हिन्द। यह पुस्तक ग्यारहवीं शताब्दी के इतिहास की जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
2. गयासुरी बावन की उपलब्धियों का संक्षेप में वर्णन करें।
Ans. सन् 1266 ई० में बलवन दिल्ली का सुल्तान (King) चना। गट्री पर बैठने के बाट बालयन को कई विपतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ा। राजकीय खजाना खाली हो गया था। राज्य की मर्यादा समाप्त हो चुकी थी। तुर्की सरदारों में काफी उदण्डता
आ गई थी। इन सय मुसीबतों का बलवन ने डटकर सामना किया। सुल्तान बनने के बाद बलबन ने निम्नलिखित कार्य किए-
(1) पदी सम्भालने के बाद बलबन ने एक सुदृढ़ सेना को संगठित कर दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में फैली हुई अव्यवस्था को सुधारने की कोशिश की। दोआब और अवध के विद्रोहियों का उसने स्वयं जाकर दमन किया।
(a) बलबन ने अपनी पूरी ताकत तुगरिल को पछाड़ने में लगायी और उसने स्वयं बंगाल जाने का विचार किया। इस बार बलबन के साथ उसका पुत्र बुगरा खाँ भी बंगाल में लड़ने के लिए गया। जब तुगरिल खाँ ने बलबन की ओर देखा तो उसकी हिम्मत
पस्त हो गई और वह लखनौती को छोड़कर हाजीनगर के जंगलों में भाग गया। (a) बलबन के समय मंगोलों का भय बहुत बढ़ गया था। इस क्षेत्र में बलवन हमेशा असफल रहा। सन् 1286 ई० में बलबन ने लाहौर को जीता। परन्तु वह आगे न बढ़ सका। रावी प्रदेश के आगे के भाग मंगोलों के ही नियन्त्रण में रहे। (iv) चालिसियों के संहार का सारा श्रेय बलबन को प्राप्त है।
(v) बलबन की जासूस व्यवस्था बहुत ही अच्छी थी। जासूसों को बहुत अच्छा वेतन मिलता था। जासूस विभाग प्रान्तपतियों के नियन्त्रण से मुक्त था। अतः जासूस व्यवस्था की मदद से बलबन अपनी शक्ति को सुदृढ़ बनाने में सफल हुआ। (vi) बलबन ने पुराने अनुदानों को फिर से शुरू करा दिया, बल्कि उनके धारकों की
अवस्था के अनुकूल कुछ वृत्तियों का प्रबंध किया। इससे बहुत असंतोष फैल गया
और अन्त में बलबन ने उन भूमियों के पुनः वितरण का आदेश ही रद्द कर दिया। (vi) बलवन ने इमाद-उल-मुल्क को सेना का प्रबंधक बनाया। वह एक कुशल अधिकारी सिद्ध हुआ। फलतः सेना में कठोर अनुशासन आ गया जिससे शासन संचालन सुचारू रूप से होने लगा।
(viii) राजपद के विषय में उसने स्वयं ‘ईश्वर का प्रतिनिधि’ की उपाधि धारण की। उसने सुल्तान के लिए अपना सम्मान प्रदर्शित करने के विषय में अपने दरबार में सिजदा (लेटकर नमस्कार करना) और पायनोस (पाँव का चुम्बन लेना) की प्रथा का प्रचलन किया। अपने दरबार का सम्मान बढ़ाने में उसने नौरोज प्रथा प्रचलित की। इस तरह बलबन ने सुल्तान की मर्यादा को पुनः स्थापित किया।
Q.3. हर्ष का चरित्र-चित्रण करें।
(Imp.) Ans. हर्ष प्रारम्भ में शैव धर्म का अनुयायी था, जिसकी पुष्टि विभिन्न स्रोतों से होती है। बौद्ध धर्म के प्रति हर्ष का झुकाव बौद्ध भिक्षु दिवाकर मित्र से मिलने के पश्चात् हुआ।
डेनसांग से घिरने के बाद तो उसने चौद्ध धर्म की महायान शाखा की राज्यात्रय प्रदान किया। अन्य चयों में महायान की उत्कृष्टता सिद्ध करने के लिए हर्ष ने कन्नौज में विभिन्न धर्मों एवं सम्बली के आचार्यों की एक विशाल सभा बुलायी। हर्ष ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए स्यूपों एवं विहारों का निर्माण करवाया तथा नालन्दा विश्वविद्यालय को दान दिया। उसने कन्नौज व प्रयाग की सीमाओं में महात्मा बुद्ध के साथ ही शिवजी व सूर्य की पूजा की।
4. इम्बतूता के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक का मूल्यांकन करें। (Imp.)
Ans. इब्नबतूता मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में भारत आया था। इब्नबतूता वे उसकी धार्मिकता की बहुत प्रशंसा की। सुलतान एक सध्या मुसलमान था। स्वयं नियमित रूप से 5 बार नमाज पढ़ता था। एक सच्चे मुसलमान की तरह उसने धार्मिक सहिष्णुता की बीति को अपनाया और हिन्दुओं को कई उच्च पदो पर नियुक्त किया। मुहम्मद तुगलक बहुत उदार व दानी शासक था। सुलतान बहुत न्याय-प्रिय था। सुलतान का निजी जीवन शुद्ध और निर्मल था। वह भोग-विलास से दूर रहता था।
इब्नबतूता लिखता है कि 1327 ई० में मुहम्मद तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली की बजाय देवगिरि को बनाया जिसका नाम दौलताबाद रखा गया।
Q.5. सल्तनत काल में खिल्लत क्या था?
Ans. दिल्ली सल्तनत के शासकों की समृद्धि चकाचौध करने वाली थी। सुल्तान वैभवशाली जीवन व्यतीत करते थे। सुल्तानों द्वारा योग्य व्यक्तियों को ऊँची-ऊँची पदवियाँ प्रदान की जाती थीं। इसे सल्तनत का एक महत्वपूर्ण पक्ष समझा जाता था। पुरस्कारों के रूप में
Aखिल्लत (सम्मान का जामा) भी प्रदान किया जाता था। यह सुल्तान के आर्शीवाद का प्रतीक समझा जाता था।
6. भारत आने वाले चार विदेशी यात्री एवं उनके यात्रा वृत्तान्त के नाम लिखें
ans. भारत आने वाले चार विदेशी यात्री के नाम इब्नबतूता, बर्नियर, निकोलो कोन्ती और अलबेरुनी है। इब्नबतूता के यात्रा-वृतान्त का नाम ‘अजायनुल असफार’ और बर्नियर के यात्रा-वृतान्त का नाम ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ है। • इटली के यात्री निकोलो कोन्ती ने 1420 में विजयनगर की यात्रा की। अलबेरुनी अरब से आनेवाला प्रसिद्ध यात्री था।
6. अलाउद्दीन खिलजी ‘दूसरा सिकन्दर’ क्यों बनना चाहता था ?
Ans. अलाउद्दीन अपनी विजय-पताका दूर-दूर तक फहराना चाहता था। वह दिल्ली में बैठकर शासन करना नहीं चाह रहा था। उसकी इच्छा थी कि अपने किसी प्रतिनिधि को दिल्ली की गद्दी देकर स्वयं पूर्व एवं पश्चिम के अभियान पर निकल जाय। सिकन्दर का भूत उसपर इस प्रकार सवार हुआ कि सिक्कों पर अपने नाम के बदले दूसरा सिकन्दर लिखवा दिया। सार्वजनिक प्रार्थनाओं में अलाउद्दीन अपने को दूसरा सिकन्दर घोषित करने लगा। अलाउद्दीन को सुबुद्धि देना फिर आवश्यक था। अतः अलाउलमुल्क ने अलाउद्दीन को सही मार्ग दिखाया। उसने बताया कि विश्व विजय की योजना सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से सही है, परन्तु व्यावहारिक दृष्टिकोण से नहीं। सिकन्दर के समय विश्व की जो परिस्थिति थी वह आज नहीं है। अलाउद्दीन ने अलाउलमुल्क की बात मान सिकन्दर बनने की योजना को छोड़ दिया।