1. यूरोपीय इतिहास में ‘घेटो’ का क्या महत्व है?
उत्तर-यह शब्द मध्य यूरोपीय देशों में यहूदी बस्ती के लिए प्रयोग किया जाता था। आज की भाषा में यह एक धर्म, प्रजाति या समान पहचान वाले लोगों को दर्शाती है। घेटोकरण मिश्रित व्यवस्था के स्थान पर एक सामुदायिक व्यवस्था थी; जो सामुदायिक दंगों को देशी रूप देते थे।
2. गैरीबाल्डी के कार्यों की चर्चा करें।
उत्तर-इतिहास गैरीबाल्डी को इटली के एकीकरण के क्रम में दक्षिणी इटली के रियासतों का एकीकरण करने हेतु याद करता है। प्रारंभ में वह मेजिनी के विचारों का समर्थक था, किन्तु बाद में काबूर से प्रभावित हो संवैधानिक राजतंत्र का पक्षधर बन गया। गैरीबाल्डी पेशे से नाविक था। उसने कर्मचारियों तथा स्वयंसेवकों की सशस्त्र सेना का गठन कर इटली के प्रांत सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। गैरीबाल्डी ने यहाँ विक्टर इमैनुअल के प्रतिनिधि के रूप में सत्ता सम्भाली। तत्पश्चात गैरीबाल्डी विक्टर इमैनुअल से मिला और दक्षिणी इटली के जीते गये सम्पूर्ण क्षेत्र एवं संपत्ति उसे सौंप दी। गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुअल द्वारा दक्षिण क्षेत्र के शासक बनने के निमंत्रण को ठुकरा दिया और कृषि कार्य करना स्वीकार किया।
3. इटली तथा जर्मनी के एकीकरण में आस्ट्रिया की भूमिका क्या थी?
उत्तर-इटली तथा जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया सबसे बड़ी बाधा थी। चूँकि एकीकरण के पीछे मूलतः राष्ट्रवादी भावना थी और ऑस्ट्रया का चांसलर ‘मेटरनिख’ घोर प्रतिक्रियावादी था। इसने इटली तथा जर्मनी में एकीकरण हेतु होनेवाली सभी आंदोलनों अथवा प्रयासों को दबाया
मेटरनिख की दमनकारी नीति के प्रतिक्रियास्वरूप इटली तथा जर्मनी की ‘जनता में राष्ट्रवाद का भाव बढ़ता गया।
ऑस्ट्रिया में मेटरनिख के पतन के बाद इटली तथा जर्मनी के लोगों ने एकीकरण के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा को समाप्त हुआ देख पुनः भारी उत्साह के साथ एकीकरण का प्रयास किया और अन्ततः सफलता पायी
वियना काँग्रेस की दो उपलब्धियाँ बताइए। उत्तर-वियना काँग्रेस की दो उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं- (i) आस्ट्रिया
के वियना नगर में नेपोलियन को पराजित करनेवाले प्रमुख राष्ट्रों-ब्रिटेन, रूस, प्रशा और आस्ट्रिया के प्रतिनिधियों का सम्मेलन 1815 ई० में किया जो गया। इसे वियना काँग्रेस सम्मेलन कहा गया। (ii) वियना काँग्रेस सम्मेलन में नेपोलियन द्वारा पराजित राजवंशों की पुर्नस्थापना का प्रयास किया गया। फ्रांस और स्पेन में बुबाँ राजवंश का राज्य स्थापित हुआ।
4. रूस की क्राति ने पूरे विश्व को प्रभावित किया। किसी उदाहरणों द्वारा स्पष्ठ करें।
उत्तर-(1) इस क्रांति ने विश्व को दो विचारधाराओं में बाँट दिया।( इस क्रांति ने आर्थिक नियोजन का नया प्रारूप प्रस्तुत किया, जिसे पूर्व
देशों ने अपनाना शुरू किया। 2. सर्वहारा वर्ग ‘किसे कहते हैं?
उत्तर-समाज का वह लाचार वर्ग जिसमें गरीब किसान, कृषक मजदूर सामान्य मजदूर, श्रमिक एवं आम गरीब लोग शामिल हो उसे सर्वहारा वर्ग कहते हैं। इस वर्ग के लोगों के पास बुनियादी चीजें भी उपलब्ध नहीं होतीं।
5. रूसी क्रांति के किन्हीं दो कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-रूसी क्रान्ति के दो महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित थे-
(1) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन यद्यपि 19वीं सदी के • मध्य में राजतंत्र की शक्ति सीमित की जा चुकी थी। रूसी राजतंत्र अपना विशेषाधिकार छोड़ने को तैयार नहीं था। जार निकोलस द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। जार की अफसरशाही अस्थिर और नी नेतृत्व अकुशल थी। गलत सलाहकारों के कारण जार की स्वेच्छाचारित बढ़ती गई और जनता की स्थिति बद से बदतर होती गई
स्थिति में साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव को रोकने के उद्देश्य से फ्रांस के समर्थन में अमेरिका ने प्रत्यक्षतः हिन्द-चीन में उतरने का निश्चय किया। चूंकि रूस पहले से साम्यवादी हो ची मिन्ह का समर्थन कर रहा था अतः तृतीय विश्व युद्ध की संभावना नजर आ रही थी। इन्हीं परिस्थितियों में मई, 1954 ई. में जेनेवा समझौता हुआ जिसके फलस्वरूप वियतनाम को दो हिस्सों में बाँट उत्तरी वियतनाम साम्यवादियों को तथा दक्षिण वियतनाम फ्रांस-अमेरिका समर्थित सरकार को दे दिया गया।लाओस और कम्बोडिया में वैध राजतंत्र के रूप को स्वीकार कर संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई। इस व्यवस्था के बाद भी साम्यवादी, दक्षिण वियतनाम, लाओस तथा कम्बोडिया में प्रभाव बढ़ाते जा रहे थे. जबकि अमेरिका इन क्षेत्रों को साम्यवादी प्रभाव में जाने से रोकने के लिए
कृतसंकल्प था।
6. साइमन कमीशन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-भारत में संवैधानिक सुधार के मुद्दे पर विचार करने हेतु 1919 के भारत अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि 10 वर्ष के बाद आयोग की नियुक्त किया जाएगा। यह आयोग अधिनियम में परिवर्तन पर विचार करेगा। जन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में 1927 को साइमन कमीशन बना। जिस सात सदस्यीय आयोग का गठन किया गया उसमें एक भी भारतीय नहीं था। भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। फलतः 3 फरवरी, 1928 को बम्बई पहुँचने पर साइमन कमीशन का पूरे
भारत में विरोध हुआ और जनता पुनः संघर्ष के लिए तैयार हो गई।
7. रॉलेट एक्ट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-रॉलेट एक्ट, न्यायाधीश सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली स एक समिति द्वारा निर्मित क्रांतिकारी विरोधी एवं अराजकतापूर्ण अधिनियम था। समिति की अनुशंसा पर क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम को 21 मार्च, 1919 को केन्द्रीय विधान परिषद में पारित किया गया। इसके अंतर्गत एक विशेष न्यायालय के गठन का प्रावधान था। जिसके निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती थी। किसी भी व्यक्ति को बिना साक्ष्य या वारंट के कहीं भी, किसी समय, गिरफ्तार किया जा सकता था। इस एक्ट के विरोध में गाँधी जी की अध्यक्षता में एक सत्याग्रह सभा
आयोजित की गई और गिरफ्तारियाँ दी गई। 6 अप्रैल 1919 को देशब्यागी हड्ताल आयोजित हुआ।
8. असहयोग आन्दोलन प्रथम जन-आन्दोलन था। कैसे ?
उत्तर – असहयोग आंदोलन महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आरंभ किया गया प्रथम जन आंदोलन था। इस जन आंदोलन के मुख्यतः तीन कारण थे
(i) खिलाफत का मुद्दा, के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना
(ii) और अन्ततः
पंजाब में सरकार की बर्बर कार्रवाइयों
(iii) स्वराज की प्राप्ति करना।
इस आंदोलन में दो तरह के कार्यक्रम को अपनाया गया। प्रथमतः अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने एवं नैतिक रूप से पराजित करने के लिए विध्वंसक कार्य जिसके अन्तर्गत उपाधियों तथा अवैतनिक पदों का त्याग करना, सरकारी तथा गैर सरकारी समारोहों का बहिष्कार, स्कूल-कॉलेजों का बहिष्कार आदि।
द्वितीयतः रचनात्मक कार्यों के अंतर्गत राष्ट्रीय विद्यालय एवं कॉलेज की स्थापना, स्वदेशी को अपनाना, चरखा खादी को लोकप्रिय बनाना आदि।
इन आन्दोलन में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में व्यापक स्तर पर लोगों की सहभागिता रही, अतः हम कह सकते हैं कि असहयोग आन्दोलन प्रथम जन आन्दोलन था।
9. भारतीयों द्वारा वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट का विरोध क्यों किया गया?
उत्तर-लार्ड लिटन के शासन काल में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878
पारित किया गया। इस एक्ट का उद्देश्य देशी भाषा के समाचार पत्रों पर कठोर अंकुश लगाना था। इस एक्ट के अनुसार, भारतीय समाचार पत्र ऐसा कोई समाचार प्रकाशित नहीं कर सकते थे जो अँग्रेजी सरकार के प्रति दुर्भावना प्रकट करता हो। सरकार ऐसा समाचार छापने वाले अखबारों के सम्पादकों से बॉण्ड लिखवा सकती थी तथा उनसे जमानत भी ले सकती थी। सरकार को यह अधिकार भी मिला कि आवश्यक होने पर वह सम्पादक की जमानत खारिज कर दे तथा प्रेस को जब्त भी कर ले। परिणामस्वरूप
भारतीय राष्ट्रवादियों ने इस एक्ट का कड़ा विरोध किया था। 5. असहयोग आंदोलन को गाँधीजी ने क्यों स्थगित किया?
उत्तर- असहयोग आंदोलन के दौरान 5 फरवरी, 1922 को पुलिस ने निःशस्त्र प्रदर्शनकारियों पर गोली चला दी। इससे प्रदर्शनकारी उग्र हो उठे। पुलिस ने भागकर थाना में शरण ली। भीड़ ने थाना में आग लगा दी। – सामाजिक विज्ञान