1. लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी एवं वैध सरकार का गठन करता है?
उत्तर-लोकतंत्र अप्रत्यक्ष निर्वाचित जन प्रतिनिधियों द्वारा संचालित शासन प्रणाली है। निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों के द्वारा विधायिका का गठन होता है। विधायिका से पारित होने के बाद ही मुद्दे निर्णय में बदलते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोग यह जानने का हक रखते हैं कि निर्णय या फैसला किन परिस्थितियों में कैसे लिए गए। लोकतंत्र यहाँ पारदर्शिता में विश्वास करती है। निर्णय के सम्बन्ध में जम कर चर्चाएँ होती हैं। तात्पर्य यह कि ये निर्णय यदि जनकल्याणकारी नहीं हैं अथवा जनआकांक्षाओं को पूरा कर पाने में अक्षम हैं तो आम बहस आदि के बाद विरोध का माहौल बनने लग जाता है। जनान्दोलन एवं जन-संघर्ष की सुगबुगाहट होने लगती है। इस प्रकार काफी हद तक लोकतंत्र एक उत्तरदायी एवं वैध सरकार
2. . भाषा नीति क्या है?
उत्तर-भारत में बहुत-सी भाषाएँ बोली जाती हैं। इसलिए भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया। यह आबादी के 40 प्रतिशत लोगों की भाषा है। संविधान के अनुसार सरकारी काम-काज की भाषा में अंग्रेजी के प्रयोग के निषेध के बावजूद गैर हिन्दी भाषी प्रदेशों की माँग के कारण अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहा। तमिलनाडु में इस माँग को लेकर उग्र प्रदर्शन हुआ। सरकार ने इस विवाद को हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी राजकीय कामों में प्रयोग की अनुमति देकर सुलझाया।भारत में 1991 की सूचना के आधार पर जनगणना में 1500 से ज्यादा अलग-अलग भाषाओं को अपनी मातृभाषा के रूप में दर्ज कराया। इन भाषाओं में कुछ को समूहबद्ध किया गया। जैसे-भोजपुरी, मगही, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी राजस्थानी, भीली आदि को भी हिन्दी के अंदर जोड़ दिया गया। इस समूह बद्धता के बाद भी 144 प्रमुख भाषाएँ पाई गयीं। इनमें से 22 को भारतीय संविधान की आठवीं सूची में रखा गया। अतः इसे अनुसूचित भाषाएँ भी कहा जाता है
3. परिवारवाद और जातिवाद बिहार में किस तरह लोकतंत्र को प्रभावित करता है?
उत्तर-किसी जनप्रतिनिधि द्वरा खाली सीट पर उसके ही किसी परिजन को बैठाने का प्रयास परिवारवाद कहलाता है। किसी व्यक्ति-विशेष का राजनीति में आ जाने के बाद उसके परिजनों का राजनैतिक सितारा मेधा के कारण नहीं, बल्कि उसके परिवार के प्रथम राजनीतिज्ञ के कारण चमकने लगना परिवारवाद है। बिहार भी इससे अछूता नहीं है। बिहार के अधिकांश राजनैतिक दलों में परिवारवादी प्रवृत्ति पायी जाती है। बिहार में परिवारवाद के घातक परिणाम उन्हीं राजनेताओं को झेलने पड़े जिन्होंने परिवारवाद को प्रोत्साहित किया था। परिवारवाद से राजनैतिक भ्रष्टाचार तो बढ़ता ही है, आपराधिक प्रवृत्ति भी बढ़ती है। परिवारवाद एक राजनैतिक चुनौती है इसे स्वीकारते हुए राजनैतिक दल चुनावों में इस आधार पर टिकट बँटवारे को नकारते रहते हैं किन्तु अन्ततः स्थिति जस की तस बनी रह जाती है। बिहार विधान सभा चुनाव 2015 में परिवारवादी पार्टियों को जनता ने स्वीकार कर लिया है।
4. क्या चुने हुए शासक लोकतंत्र में अपनी मर्जी से सब कुछ कर सकते हैं?
उत्तर-लोकतंत्र में जनता प्रतिनिधि का चुनाव करती है। प्रतिनिधि जनता के विकास हेतु कार्य करते हैं। किन्तु चुने हुए शासक अपनी मनमर्जी नहीं कर सकते। बेरोजगारी उन्मूलन, महँगाई पर नियंत्रण, वैश्विक तापन, जलवायु परिवर्तन, वैदेशिक नीति, आंतरिक सुरक्षा, रक्षा तैयारियाँ, देश की एकता एवं अखण्डता, आतंकवाद एवं अलगाववाद, नक्सली गतिविधियाँ, बढ़ती आर्थिक अपराधों यथा विदेशी मुद्रा का अवैध आगमन, विदेशी बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गयी बड़ी धनराशि पर नियंत्रण, उच्च एवं न्यायिक पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार, असमानता एवं असंतुलन, राजनीति में परिवारवाद एवं जातिवाद आदि भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख चुनौतियों के समक्ष शासक वर्गों की मनमानी नहीं चलने वाली है।
5. न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र की चुनौती है। कैसे ? इसके सुधार के उपाय क्या हैं?
उत्तर-भारतीय लोकतंत्र के तीन अंग हैं-कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका। कार्यपालिका को विधायिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है। विधायिका जनप्रतिनिधियों का एक संगठन है जो जनता के विकास हेतु नीतियाँ एवं कार्यक्रम तय करती हैं एवं नियम बनाती है। कार्यपालिका बनाये गए नियम, तैयार कार्यक्रमों को लागू करती है। न्यायपालिकासं वैधानिकता देखती है।न्यायपालिका के इतिहास को यदि हम भारतीय सन्दर्भ में देखें तो इसे बिल्कुल साफ-सुथरा नहीं कहा जा सकता। न्यायपालिकाओं के निर्णय सत्ताधारी दलों या राजनेताओं द्वारा प्रभावित होते रहे हैं। न्यायाधीशों की नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी है। न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार के कई
6. वर्तमान भारतीय राजनीति में लोकतंत्र की कौन-कौन-सी चुनौतियाँ हैं? विवेचना करें।
उत्तर-लोकतांत्रिक चुनौतियों में भारत के संदर्भ में सबसे बड़ी और पहली चुनौती यह है कि पड़ोसी देशों में लोकतांत्रिक सरकार का गठन करने के लिए बुनियादी आधार कैसे बनाया जाय ? पड़ोसी देश नेपाल में राजशाही के समापन के बाद लोकतांत्रिक सरकार सफलता एवं असफलता के बीच झूलती नजर आ रही है। भारतीय लोकतंत्र की अन्य चुनौतियों में बुनियादी सिद्धान्तों को सभी लोगों, सभी सामाजिक समारोहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना, स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार सम्पन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धान्तों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना, लोकतांत्रिक संस्थाओं की कार्य-पद्धति को सुधारना तथा मजबूत बनाना, महँगाई से निपटना, बेरोजगारी की समस्या का समाधान, आर्थिक मंदी से उबरना, ग्लोबल वार्मिंग का निदान ढूँढ़ना, जलवायु परिवर्तन, वैदेशिक नीति, आन्तरिक सुरक्षा की व्यवस्था करना, रक्षा तैयारी सम्बन्धी, एकता एवं अखण्डता को बनाए रखना, आतंकवादी एवं अलगाववादी गतिविधियों पर नियंत्रण रखना, नक्सली गतिविधियों से निपटना, अवैध घुसपैठ से निपटना, आर्थिक अपराध जिसमें विदेशी मुद्रा का अवैध आगमन, विदेशी बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गयी बड़ी धनराशि, उच्च एवं न्यायिक पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार, असमानता एवं असंतुलन से निपटना आदि हैं।
7. राज्य संस्थागत वित्तीय स्रोत के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-राज्य स्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोतों में सहकारी बैंक, प्राथमिक सहकारी समितियाँ, भूमि विकास बैंक, व्यावसायिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा नाबार्ड आते हैं। सहकारी बैंकों के माध्यम से राज्य के किसान अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण प्राप्त करते हैं। ये कई स्तरों पर अपने स्रोतों से कार्य करते हैं। प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ या प्राथमिक कृषि साख समितियाँ (PACS) उत्पादक कार्यों के लिए अधिकतम एक वर्ष के लिए ऋण उपलब्ध कराती है। यह अवधि विशेष परिस्थिति में तीन वर्ष के लिए बढ़ायी जा सकती है। भूमि विकास बैंक कृषि में स्थायी सुधार एवं विकास के लिए दीर्घकालीन ऋण की व्यवस्था करता है। व्यावसायिक बैंक भी अपने राज्य स्तरीय दायित्वों के अन्तर्गत शाखाओं का विस्तार करते हुए कृषकों को ऋण उपलब्ध कराते हैं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सीमान्त एवं छोटे किसानों को, कारीगरों तथा अन्य कमजोर वर्गों को जरूरतों के मुताबिक ऋण या साख उपलब्ध कराती है।नाबार्ड जो राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के नाम से जानी जाती है। कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सरकारी संस्थाओं, व्यावसायिक बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित्त की सुविधा प्रदान करता है जिसे ये बैंक ग्रामीणों तक पहुँचाते हैं।