1. राम का नाम सुनते ही तुलसीदास की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसीदास के इस भरोसे का कारण स्पट करें?
उत्तर : गोस्वामी तुलसीदास राम की भक्ति में इतना अधिकनिमग्न थे कि वह पूरे जगत को राममय पाते थे- “सियाराम मय सब जग जानी” यह उनका मूलमंत्र था। अतः उनका यह दृढ़ विश्वास था कि राम दरबार पहुँचते ही उनकी बिगड़ी बातें बन जाएँगी। अर्थात् राम ज्योंही उनकी बातों को जान जाएँगे, उनकी समस्याओं एवं कष्टों से परिचित होंगे, वे इसका समाधान कर देंगे। उनकी बिगड़ी हुई बातें बन जाएँगी।
रहती है। माँ गोद से भी उसे नहीं उतारती है। बच्चे की आवाज सुनकर वह दौड़कर आती है और पुत्र की रक्षा करती है। माँ थपकी देकर बच्चे को सुलाती है। माँ लोरियाँ गा-गाकर पुत्र को सुलाती है। किसी भी तरह बच्चे को माँ रुग्ण नहीं देखना चाहती है। वह बीमार होने पर रात जागकर काट लेती है। माँ हर पत्थर को देव मानकर बच्चे के लिए दुआ-सलामत माँगती है। वह नारियल, दूध और बताशे चढ़ाती है। अपना बच्चा छिनते ही वह असहाय और विवश हो उठती है।
3. ‘राख से लीपा हुआ चौका’ के बारे में कवि का क्या कहना है?
उत्तर :सूर्योदय के समय आसमान के वातावरण में नमी दिखाई दे रही है और वह राख से लीपा गीला चौका-सा लग रहा है। इससे उसकी पवित्रता झलक रही है। कवि ने सूर्योदय से पहले आकाश को राख से लीपे चौके के समान इसलिये बताया है ताकि वह उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त कर सके
4. दूसरे पद में तुलसी ने दीनता और दरिद्रता का प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर : दीनता और दरिद्रता लगभग समानार्थक शब्द हैं। दीनतादीन होने का भाव है। दीनता में नम्रता होती है। दीनता गरीबी को कहते हैं। दीनता विपन्नता को कहते हैं। दीनता मनुष्य की दुरवस्था है। दीनता में मनुष्य की दुर्दशा होती है। दरिद्रता भी गरीबी, कंगाली, निर्धनता और अभावग्रस्तता का दूसरा नाम है। दीनता दूर हो सकती है, दरिद्रता के कीचड़ में फँसा आदमी फँसता ही जाता है। अकाल में उस समय लोग फँस गए थे। इसीलिए दीनता और दारिद्रय दोनों शब्दों का प्रयोग तुलसीदास ने किया है।
5 . छत्रसाल की तलवार कैसी है?
उत्तर : रीतिकालीन कवि भूषण ने छत्रसाल की तलवार का बड़ा प्रभावी वर्णन किया है। उस बुंदेला वीर की तेज धारवाली देदीप्यमान तलवार जब म्यान से बाहर आती थी तो वह प्रलय के सूर्य की तीक्ष्ण किरण की तरह प्रतीत होती थी। वह शत्रु दल के हिन्दी
6. ‘रोज’ कहानी में मालती को देखकर लेखक ने क्या सोचा?
उत्तर-‘रोज’ कहानी में मालती को देखकर लेखक चिंता में पड़ गया क्योंकि जवानी के दिनों में मालती और विवाहित मालती में काफी अन्तर आ गया था। क्योंकि विवाहित मालती का शरीर गृहस्थ जीवन के बोझ तले दब गया है। यह तो मालती नहीं है केवल उसकी छाया है। लेखक को ऐसा आभास हुआ।
7. भगत सिंह किस प्रकार के देशभक्त की आवश्यकता महसूल करते थे?
उत्तर-भगत सिंह महसूस करते हैं कि लोग निष्ठापूर्वक त्याग, लग्न तथा आत्मोत्सर्ग की भावना से युक्त होकर देश की आजादी में योगदान करें। ऐसे देशभक्त की आवश्यकता महसूस करते थे कि हमें दूसरे पर आश्रित नहीं होना चाहिए तथा दोषारोपण नहीं करना चाहिए। बल्कि त्याग, लगन एवं आत्मोत्सर्ग कर देश के लिए कुर्बान हो जाएँ। .
8.नाभादास किसके समकालीन थे और किसके शिष्य थे?
उत्तर-नाभादास गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे औरस्वामी अग्रदास के शिष्य थे।
9. हेडमास्टर कली राम ने ओमप्रकाश को क्या आदेश दिया था?
उत्तर- हेडमास्टर कली राम ने ओम प्रकाश को अपने स्कूल से निकल जाने का आदेश दिया।
10. प्रातः काल का नभ कैसा है?
उत्तर : प्रातः काल का नभ नील शंख जैसा है। ऐसा प्रतीत होता है मानो राख से लीपा हुआ चौका हो जो अभी गिला पड़ा है। प्रातः काल का नभ ऐसा लगता है मानों किसी ने स्लेट, पर लाल खल्ली घिस दी हो।
11. हरचरना कौन है? उसकी कया पहचान है ?
उत्तर : हरचरना एक गरीब स्कूली छात्र है, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी उपेक्षित आम आदमी का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रीय त्योहार के दिन झंडा फहराये जाने के जलसे में वह ‘फटा सुथन्ना’ पहन सबसे पहले राष्ट्रगान दोहराता है। वस्तुतः हरचरना लोकतांत्रिक शासन पर व्यंग्य है।
11. जयशंकर प्रसाद के ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर- प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में छायावाद के आधार कवि श्री जयशंकर प्रसाद के कोलाहलपूर्ण कलह के उच्च स्वर (शोर) से व्यथित मन की अभिव्यक्ति है। बिन्दु कवि निराश तथा हतोत्साहित नहीं है।
कवि संसार की वर्तमान स्थिति से क्षुब्ध अवश्य हैं किन्तु उन विषमताओं एवं समस्याओं में भी उन्हें आशा की किरण दृष्टिगोचर होती है। कवि की चेतना विकल होकर नींद के पुल को ढूँढ़ने लगती
है उस समय वह थकी-सी प्रतीत होती है किन्तु चन्दन की सुगंध से सुवासित शीतल पवन उसे संबल के रूप में सांत्वना एवं स्फूर्ति प्रदान करती है। दुःख में डूबा हुआ अंधकारपूर्ण मन जो निरन्तर विषाद से परिवेष्टित है, प्रातःकालीन खिले हुए पुष्पों के सम्मिलन (सम्पर्क) से उल्लसित हो उठा है। व्यथा का घोर अन्धकार समाप्त हो गया है। कवि जीवन की अनेक बाधाओं एवं विसंगतियों का भुक्तभोगी एवं साक्षी है।
कवि अपने कथन की सम्पुष्टि के लिए अनेक प्रतीकों एवं प्रकृति का सहारा लेता है यथा-मरु-ज्वाला, चातकी, घाटियाँ, पवन को प्राचीर, झुलसवै विश्व दिन, कुसुम ऋतु-रात, नीरधर, अश्रु-सर मधु, मेरन्द-मुकलित आदि।
इस प्रकार कवि ने जीवन के दोनों पक्षों का सूक्ष्म विवेचन किया है। वह अशान्ति, असफलता, अनुपयुक्ता तथा अराजकता से विचलित नहीं है।
12. ‘जन-जन का चेहरा एक’ में गजानन माधव मुक्तिबोध ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर- “जन-जन का चेहरा एक” कविता अपने में एक विशिष्ट एवं व्यापक अर्थ समेटे हुए हैं। कवि पीड़ित संघर्षशील जनता की एकरूपता तथा समान चिन्तनशीलता का वर्णन कर रहा है। कवि की संवेदना, विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता के प्रति मुखरित हो गई है, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कार्यरत हैं। एशिया, यूरोप, अमेरिका अथवा कोई भी अन्य महादेश या प्रदेश में निवास करने वाले समस्त प्राणियों का शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का स्वरूप एक जैसा है। उनमें एक अदृश्य गोचर एवं अप्रत्यक्ष एकता है।पूर्ण है।उनकी भाषा, संस्कृति एवं जीवन शैली भिन्न हो सकती है. किन्तु उन सभी के चेहरों में कोई अन्तर नहीं दिखता, अर्थात् उनके