(1)गुरु-निरपेक्ष आंदोलन (NAM) पर एक निबंध लिखिचे।
पेक्ष-निरपेक्षता आरंभ में मात्रा भारत की विदेशी नीति यद बार थी। शीष ही अनेक अन्य देश भी इस नीति को अपनाने के लिए तैयार हो गए। देखते-ही-देखते-निषेध ने एक आंदोलन का रूप धारण कर लिया। नेहरू, नासिर तथा बीटो शुभ आरंभ कस सभ हुआ जब 1961 में 25 देशों का पहला गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन बेलमेट में हुआ। 1986 में हरारे (जिम्मा से कवीं गुड-निरपेक्ष सम्मेलन हुआ जिसमें संसार के लगभग दो विद्याई देशों ने भाग लिया। अयानों से गुर-निरपेक्ष आदोलन
गुरु-रिलेशन के प्रथम (1961), द्वितीय काहिय (1964),
• तृतीय सुसाका (1970), पौभा अरजीरिया (1973),
(1976), छा
कृयाना (1979), सातईदिल्ली (1983), आठहरे (1986), (1989), • दसवाँ जकार्ता (1992), ग्यारहवी कार्टन (1995) चौदह थाना (क्यूबा) (2006) गुटनिरपेक्ष आंदोलन गुर-निरपेक्ष ऐसा मांदोरसन बन चुका है जो एक न्यायपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना करना चाहता है। यही है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन
परमायु शक्ति का विरोध
दस हजार करोड़ डॉलर
खर्च किया जाता है। अतः है कि निरपेक्ष आंदोलन संसार का विनाश
के 1943 में दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त होनारचा एक विचित्र स्थिति पैदा
हो गई जिसे शीतयुदाहतो संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच बढ़ते हुए तनावपूर्ण सम्बन्धी परिधायक थी। धीरे-धीरे
शीतयुद्ध की लपेट में एशिया के देश भी आ गए। 1933 के बाद इस रासदीपूर्ण स्थिति में सुधार होना शुरू हुआ। टीवी महाशक्तियाँ एक-दूसरे के निकट आने लगी परस्पर सहयोग के लक्षण प्रकट होने लगे विनीतनाव-या गई विश्व र बढ़ने लगा। 1991 विखण्डन के साथ युद्धनौल्य दोनों का अन्त हो गया।
के
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में शीतयुद्ध निम्न तीन विशेष कृतियों को उजागर किया- (1) दोनों महाशक्तियाँ तनावपूर्ण सम्बन्धी की गहरा करने पर उतारू थी स्थितिको लने से उतनी ही सावधान भी थी। छोटे-मोटे संघर्ष संधर्ष चलते
रहने साहिए किन्तु ऐसी स्थिति आने दी जाए कि तीसरा विश्वयुद्ध छिड़ आए जो दौनी के विनाश को सुनिश्चित करे। (2) सशसंग की स्थिति नहीं श्री किन्तु दीनी व कूटनीतिक संत्राम ताकि अपने विरोध को
मासम्भव चोट या हानि पहुंचाकर अपना पक्ष सबल कर सके तथा विषय पर कार्यस्थापित हो सके।
दूसरे की समाप्ति के बाद विश्व दोष होगा। परन्तु 1991 में के बाद द्विवीगता समाप्त हो गयीं। शीत युद्ध के कारण विश्य दो शहंदी पुढों में बंट गया एक पुट अमेरिका की
अआईक दूसरा सोवियत संगको अगुवाई में। इसमें रिपेक्ष आदोलनका जन्म 1961 में हुआ और इसने एशिया, अफ्रीका और सैटिनी अमरीका के दोनो बहाशक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन के वैसे-वैसे इसमें विभिन्न राजनीतिकणारी और हितों के देश शामिल होते गए। इससे गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के मूल रूप में बदर आया। इसी कारण बुद्धनिरपेक्ष आन्दोलन की सटीक परिभाषा रिभाषा कर है। तंत्र देशको एक तीसरा विकल्प दिया। रहने का। जैसे-जैसे निरपेक्ष आंदोन एक
(1) बुद्ध निरपेक्ष आन्दोलन महाशक्ति के गुटों में शामिल न होने का आन्दोलन है। () हाकियों के से अलगाने की इस नीति कलाद नहीं है। कुटनिरपेक्षता पृथकता नहीं है क्योकि पृथकाका अर्थ होता है अपने को
अंतर अंतर्राष्ट्रीय मानली से काटकर रखना। इसके विपरीत भारत समेत अन्य गुरनिरपेक्ष देशों ने, शांति और स्थिरता बनाए रखने के में सक्रिय भूमिका निभाई। लिए प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच मध्यस्थता
(i करा तहस्ता की पीति का पालन करने वाले देश के लिए यह जरूरी नहीं कि वह युद्धको समाप्त करने में मदद करें। ऐसे देश बुद्ध में शामिल नहीं होते और के सही-गलत होने कारणों से भारत सहित कई गुटनिरपेक्ष देशों के
) महाशकियों के गुनी से अलग रहने की इस नीति का मतलब जस्ता भी नहीं है। तटस्थता का अर्थ है मुख्य मुहिने की नौकर
से जालने के लिए काम किया है और हो रहे बुद्ध अंत के लिए प्रयास किए है।
सोवियत संथ के विचाटन और तत्पश्चात् 1991 में शीतयुद्ध के अंत के साथ ही गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता प्रभावकारिता में थोडी कमी आयी। दरअसल गुटनिरपेक्षता आधारभूत मूल्य और विचार है।
आरत पुट निरपेक्षस की जीती शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमरीका और सोवियत संघ के प्रति विदेश
नीति बना थी ?
परीक्षण कीजिए।
श्रीदेवी (India’s Foreign Policy of Non-Alignment) आरंभ से ही मुखिया की जीत को अपनी विदेश नीति एक आधारभूत तत्व माना और संयुक्त राज्य अमरीका तथा सोवियां दोनों के साथ ही मित्रता के सम्बन् बनाने की नीति अपनायी। भारत दोनों में से किसी भी सैमिक गठबंधन में सम्मिलित नहीं हुआ। भारत ने आधार पर दोनों की गतिविधियों की प्रशंसाया आला की,
भारत के हितों की दोन देशों से मित्रता की विदेश नीति या गुट
निरपेचता की नीति पर आधारित दीप शक्तियों की आलोचना भी पड़ोसी देश पाकिस्तान अमरीका गुट का पक्का सदस्य का साथ दिया। कुछ हारियाँ भी हुई पर अ नीति भारत के लिए उसके
सिद्ध हुई। निम्नलिखित तथ्य इस बात की पुष्टि करते है म भारत की सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक दशा बड़ी
भुखमरी, कृषि शोचनीय थी और उसे गरीबी, बेरोजगारी बीमारी अर का पिछड़ापन, उधी की कमी आदि की समस्याओं बमय उसकी धनिकल अपने सामाजिक विक्की थी। इस कार्य में इस नीति ने बड़ी दभाव कसे करना बाता था। इसकी प्राप्ति किसी सैनिक बंधन सम्मिलित हुए बिना ही हो सकती थी। यदि किसी गुट में सम्मिलित होता तो उसे उसका पिछलग्गु बनन
पड़ता और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र स्वतंत्र विष नहीं कर पाता।
सम्बन्ध रखने के कारण दोनों ही देशों से आर्थिक सहायता बात कर सका और आपने सामाजिक आर्थिक विकास की ओर ध्यान देसवादी महाशक्तियों से मित्रता होने के कारण शीतयुद्ध के कारण किसी की शक्तिसंग से उसके किसी सदस्य से किसी
शत्रुता तथा आक्रमण की चिता रही। बुद्ध के भय की चिता से मुक्त होकर यह सामाजिक
क्या अमेरिकी राजनीति में स्थाची है? विश्व राजनीति पर अमेरिकी प्रभुत्व केके परिणामों का मूल्यांकन करें। On On अमेरिकी प्रभुत्व का क्या है?
Ans.विजन का वर्तमान दौर अमेरिकी प्रभुत्व की स्थापना का है। विश्व राजनीति पर अमेरिकी प्रभुत्य के निम्नलिखित परिणाम देखे जा सकते हैं-
• अमेरिकी नीति एवं कार्यों एवं कार्यों को कहीं से चुनौती मिलने का प्रश्न नहीं रहा। सोवियत संथ अमेरिका के विरुद्ध वैकल्पिक नीति रखता था। अमेरिका पहरेदार की भूमिका में है। जिस पर भी उसे संदेह होता है उस पर वह कार्रवाई करने के लिए कदम उठा लेता है। अफगानिस्तान तथा इराक पर हस्ताक्षर कर अमेरिका दिखा दिया कि वह किसी भी दिया पर कार्रवाई कर सकता है। अमेरिकी निবয়াম नियंत्रण में ही संयुक्त राष्हु संघ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगती अनार्य करती दीख पड़ती हैं। परिणामस्वरूप इन संस्थाओं की विश्वसनीयता कम हुई है। आतंकवाद के खतरे के बादल अमेरिका पर भी मंडरा रहे हैं। किंतु विश्व राजनीति में आतंकवाद से लड़ने के उसके मानदंड दीहरे है। वर्तमान स्थिति परमाणु कार्यक्रम संबंधी समझौता एक स्वागत योग्य कदम माना जाएगा। भारत मानता है कि अमेरिका ने भारतीय हिती एवं आवश्यकताओं को समझा है।
इस प्रकार वर्तमान समय में विश्व राजनीति पर अमेरिकी प्रभुत्वका प्रभाव दुरिमोर होता है। कुछ लोग मानते है कि अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिकार कोई देश अथवा देश का समूह नहीं कर पाएगा, क्योकि आज सभी देश अमेरिकी ताकत के आगे बेवश है।
एक बीच विश्व पर एक नलिए Ans. द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विर-भीर ही में बैंड गया।
एक गुट का नेता उदारवादी देश अमरीका बा तो दूसरे गुहका नेता साम्यवादी देश सोवियत संघ था। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् लगभग 15 वर्षों तक इन दोनी देशों में अधिक-से-अधिक शक्तिशाली बनने की होड़ लगी रही। दूसरे राब्दी में हम कह सकते है कि इस समय विश्वपूर्ण रूप से दि-सुवीय था।
परन्तु 1980 के दशक के अन्त एवं 1990 के दशक के प्रारम्भ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिवर्तन आए। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति बड़ा परिवर्तन सोवियत संघ का विघटन एवं शीत युद्ध के अधिकांश साम्यवादी देशों में आतंकवादी चलने लगी। इन सभी परिस्थितिय मदद की। की। एक-ध्रुवीय विश्व क पा रही एक-धुवीय बनाने में के विश्व को बहु-ध्रुवीय के स्थान नेता अमरीका क बयोंकि उसे विश्व राजनीति में एकमात्र रह गया था जिसके कारण विश्व एकच होता चला गया। विश्व के एक ध्रुवीय होने के निम्नलिखित कारण से-
संघ के 1. शीत युद्ध की समाप्ति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही अमेरिका एवं सोवियत संघ में एक-दूसरे से अधिक शक्तिशाली होने लिए शीत युद्ध चल रहा 1980 के दशक में सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गर्भाची पेरेस्ट्राइका तथा ग्लासनोस्ट की नीति अपनाई जिसके कारण सोवियत संघ का 1991 में होगথা।
अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा, जिससे विश्व एक ध्रुवीय बरगया। 2. रूस की कमजोर स्थिति सोवियत संघ के पतन के बाद कभी निर्णायक अमेरिका पर अंकुश वाली कोई शक्ति नहीं जिसके
कारण विश्व पर अमेरिका का प्रभाव बढ़ता ही गया। 3. नाटो का विस्तार अमेरिका ने जहाँ बाटों का निर्माण किया, वहीं सोवियत संघ ने इसके जवाब में बवार्ता पैक्ट का निर्माण किया। परन्तु सोवियत संघ के वन एवं शीतयुद्ध
नाटो का का एक की समाप्ति के कारण वार्या पैक्ट भी समाप्त हो गया। परन्तु अमेरिका ने नाही कोलबा रखा, बल्कि इसका इसका साम्यवादी देशी रवितार भी किया। बर्तमान समय सदस्य देश है। अतः स्मश है कि नाही के और अधिक विस्तार एवं शक्तिशाली होने से अमेरिका की विश्व राजनीति में धमक और अधिक बढ़ी है तथा विश्व एक ध्रुवीय गया।
आशियान क्या है? इसके महत्व की विवेचना कीजिए। आशिधान कथा आसियान की भूमिका पर प्रकाश डालें। शिया के दक्षिण-पूर्व के राष्ट्र अपना एक क्षेत्रीय संघटनाचा जो आशियान
के संक्षिप्त नाम से जाना जाता है और यह भी आर्थिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है।
शिपान की उप (Achievements of ASEAN): आसियान वे अपनी कार कारण लोकप्रियता पाई है और इमे तेजी से
वाले देशका क्षेत्रीय सहयोग संगठन माना जाता है। इसकी उपलब्धियाँ संधे आसियान के कार्यों का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। आज यह सभी राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक वैज्ञानिक तकनीकी और प्रशासनिक क्षेत्रों में कार्यरत है। इसके प्रथम शिखर सम्मेलन में तीन मुद्धाबी को स्वीवर किया गया वा बाहरी
आयात कम करके सदस्य राष्ट्र द्वारा पारस्परिक व्याधार पर और देना, खास तथा ऊर्जा
शक्ति बालेराष्ट्रइन क्षेत्र में भाव से पीड़ित सदस्य राष्ट्रको सहायता दे तथा
• आसियान के सदस्य राष्ट्रव्यापार की अधिकाधिक क्षेत्रीय बनाने का प्रयास करें।
1992 में आसियाम ने चौथे शिखर सम्मेलन में नई अर्थव्यवस्था की माँग की जिसमें
विकसित और दि और विकासशील देशी कोई भेदभाव रहे। 1995 के पाँचचे शिखर सम्मेलन में आशियाने 2003 तक अपने क्षेत्रको मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का निर्णय किया।
सन् 2003 में आसियान में आधिमान सुरक्षा समुदाय’ और ‘आसियान सामाजिक सांस्कृतिक समुदाय • ‘आसियान आर्थिक आर्थिक समुदाय नामक संस्थाएँ स्थापित करने का निर्णय लिया। इनका उद्देश्य यह है कि आसियान के सदस्य राष्ट्र आपसी
विवाद सैनिक कराके बिना ही शांति और आपसी बातचीत से मुलाकाएँ। आर्थिक क्षेत्र और सांस्कृतिक क्षेत्र में आपसी सहयोग से उम्मति की ओर बढ़े। आसियान ने 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की। की, जिसका उद्देश्य
आसियान के सदस्यों में सुरक्षा और विदेवियों संबंधीताल किया जाए। आधिया ने कम्बोडियाकराको सभाया है और पूर्वी सिमौर (East Timore) के संकट को संभाला है। ध्यान रहे कि पूर्वी तिमोर ने पश्चिमी तिथीर से अलग होकर अलग स्वतंत्र राज्य बनाए जाने के पक्ष में जनमत संग्रह संग्रह द्वारा भौग
रखी थी। सितंबर 2002 में को संयुक्त राष्ट्रका 191 बाया गया है।
यूरोपीय संघ की कौन सी चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगती है?
Ans. पूरोचीच यूरोपीय संघ की स्थापना में निम्नलिखित सभी की भूमिका रही है-वैरिस की सन्धि (1951), रोम की सन्धि (1937)। इन सन्धिधी की पूरक व्यवस्था के में यूरोपीय एकता अधिनियम (1986), यूरोपीय संघ पर निधि (1991 1991), एम्माटरडम सधि (1997) एवं की प्रारूप सन्धि (2000) महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यूरोपीय संध में वर्तमान में 25 सदस्य देश शामिल है, वे है आस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क, वि
प्रांस, जर्मनी, बूवान, आयरलैण्ड गणराज्य इडली लकवर्गीदरलैण्ड पुर्तगाल स्पेन, माल्टा, पोलैण्ड, स्लोवाकिया तथा स्लोवेनिया।
स्वतना 9-10 दिसम्बर, 1991 को नीदरासमेट्रिगर में 12 यूरोपीय देशों ने एक এन्धि (मेस्ट्रिच सन्धि) पर हस्ताक्षर कर यूरो कर यूरोपीय संघ की वास्तविक स्वरूप प्रदान करने में महती भूमिका निभाई। सन्धि के आधार पर जमतरी 1994 करे संस्थान की स्थापना की गई। संयुक्त यूरोपीय मुद्दा ‘यूरो के बल तथा संचालन पर
निमाण रखने के लिए जून 1998 में की यूरोपियन श्रेष्ट्रल बैंक की स्थापना की गई। बैंक के प्रथम अध्यक्ष के रूप में विनयून-वनीदरलैइसकी नियुक्ति की गई। जनवरी, 2002 से ‘यूरो’ कां चलन प्रारम्भ हुआ तथा पूरी 12 यूरो क्षेत्रो की मुद्रा ही है। यूरोपीय संघ के सीन देशी ब्रिटेन, डेनमार्क, को राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्वीकार नहीं किया है। स्वीडन में 14 सितम्बर 2003 को एकल अभी
अपनाए जाने की जनमत हेतु जनतामा